18-01-93  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

प्रत्यक्षता का आधार - दृढ़ प्रतिज्ञा

परमात्म-गले का हार बनने वाले विजयी-रत्नों प्रति सदा समर्थ बापदादा बोले -

आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों से मिलन मना रहे हैं। समर्थ बाप ने हर एक बच्चे को सर्व समर्थियों का खज़ाना अर्थात् सर्व शक्तियों का खज़ाना ब्राह्मण जन्म होते ही जन्मसिद्ध अधिकार के रूप में दे दिया और हर एक ब्राह्मण आत्मा अपने इस अधिकार को प्राप्त कर स्वयं सम्पन्न बन औरों को भी सम्पन्न बना रही है। यह सर्व समर्थियों का खज़ाना बापदादा ने हर एक बच्चे को अति सहज और सेकेण्ड में दिया। कैसे दिया? सेकेण्ड में स्मृति दिलाई। तो स्मृति ही सर्व समर्थियों की चाबी बन गई। स्मृति आई-’मेरा बाबा’ और बाप ने कहा-’मेरे बच्चे’। यही ‘रूहानी स्मृति’-सर्व खज़ानों की चाबी सेकेण्ड में दी। मेरा माना और सर्व जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त हुआ! तो सहज मिला ना। अभी हर ब्राह्मण आत्मा निश्चय और नशे से कहती है कि-बाप का खज़ाना सो मेरा खज़ाना। बाप के खज़ाने को अपना बना दिया।

आज के दिन को भी विशेष स्मृति-दिवस कहते हो। यह स्मृति-दिवस बच्चों को सर्व समर्थी देने का दिवस है। वैसे तो ब्राह्मण जन्म का दिवस ही समर्थियाँ प्राप्त करने का दिन है लेकिन आज के स्मृति-दिवस का विशेष महत्व है। वह क्या महत्व है? आज के स्मृति-दिवस पर विशेष ब्रह्मा बाप ने अपने आपको अव्यक्त बनाए व्यक्त साकार रूप में विशेष बच्चों को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने की विशेष विल-पॉवर विल की। जैसे आदि में अपने को, सर्व सम्बन्ध और सम्पत्ति को सेवा अर्थ शक्तियों के आगे विल किया, ऐसे आज के स्मृति दिवस पर ब्रह्मा बाप ने साकार दुनिया में साकार रूप द्वारा विश्व-सेवा के निमित्त शक्ति सेना को अपना साकार रूप् का पार्ट बजाने की सर्व विल-पावर्स बच्चों को विल की। स्वयं अव्यक्त गुप्त रूपधारी बने और बच्चों को व्यक्त रूप में विश्व-कल्याण के प्रति निमित्त बनाया अर्थात् साकार रूप में सेवा के विल-पावर्स की विल की। इसलिए इस दिन को स्मृति-दिवस वा समर्थी-दिवस कहते हैं।

बापदादा देख रहे हैं कि उसी स्मृति के आधार पर देश-विदेश में चारों ओर बच्चे निमित्त बन सेवा में सदा आगे बढ़ते रहते हैं और बढ़ते ही रहेंगे क्योंकि विशेष त्रिमूर्ति वरदान बच्चों के साथ हैं। शिवबाबा का तो है ही लेकिन साथ में भाग्यविधाता ब्रह्मा बाप का भी वरदान है, साथ में जगत अम्बा सरस्वती माँ का भी मधुर वाणी का वरदान है। इसलिए त्रिमूर्ति वरदानों से सहज सफलता का अधिकार अनुभव कर रहे हो। आगे चल और भी सहज साधन और श्रेष्ठ सफलता के अनुभव होने ही हैं। बापदादा को प्रत्यक्ष करने का उमंग-उत्साह चारों ओर है कि जल्दी से जल्दी प्रत्यक्षता हो जाए। सभी यही चाहते हैं ना! कब हो जाये? कल हो जाये ताकि यहाँ ही बैठे-बैठे प्रत्यक्षता के नगाड़े सुनो? हुआ ही पड़ा है। सिर्फ क्या करना है? कर भी रहे हो और करना भी है। सम्पूर्ण प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने के लिए सिर्फ एक बात करनी है। प्रत्यक्षता का आधार आप बच्चे हैं और बच्चों में विशेष एक बात की अन्डरलाइन करनी है। प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा-दोनों का बैलेन्स सर्व आत्माओं को बापदादा द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त होने का आधार है। प्रतिज्ञा तो रोज़ करते हो, फिर प्रत्यक्षता में देरी क्यों? अभी-अभी हो जानी चाहिए ना।

बापदादा ने देखा-प्रतिज्ञा दिल से, प्यार से करते भी हो लेकिन एक होता है ‘प्रतिज्ञा’, दूसरा होता है ‘दृढ़ प्रतिज्ञा’। दृढ़ प्रतिज्ञा की निशानी क्या है? जान चली जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जा सकती। जब जान की बाज़ी की बात आ गई, तो छोटी-छोटी समस्यायें वा समय प्रति समय के कितने भी विकराल रूपधारी सर्कमस्टांश (Circumstance; हालात) हों........-तो जान की बाज़ी के आगे यह क्या हैं! तो दृढ़ प्रतिज्ञा इसको कहा जाता है जो कैसी भी परिस्थितियां हों लेकिन पर-स्थिति, स्व-स्थिति को हिला नहीं सकती। कभी भी किसी भी हालत में हार नहीं खा सकते लेकिन गले का हार बनेंगे, विजयी रत्न बनेंगे, परमात्म-गले का श्रृंगार बनेंगे। इसको कहा जाता है दृढ़ संकल्प अर्थात् दृढ़ प्रतिज्ञा। तो ‘दृढ़ता’ शब्द को अन्डरलाइन करना है। प्रतिज्ञा करना अर्थात् प्रत्यक्ष सबूत देना। लेकिन कभी-कभी कई बच्चे प्रतिज्ञा भी करते लेकिन साथ में एक खेल भी बहुत अच्छा करते हैं। जब कोई समस्या वा सरकमस्टांश होता जो प्रतिज्ञा को कमजोर बनाने का कारण होता, उस कारण को निवारण करने के बजाए बहाने-बाज़ी का खेल बहुत करते हैं। इसमें बहुत होशियार हैं।

बहानेबाजी की निशानी क्या होती? कहेंगे-ऐसे नहीं था, ऐसे था; ऐसा नहीं होता तो वैसा नहीं होता; इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश ही ऐसा था, बात ही ऐसी थी। तो ‘ऐसा’ और ‘वैसा’-यह भाषा बहानेबाज़ी की है और दृढ़ प्रतिज्ञा की भाषा है-’ऐसा’ हो वा ‘वैसा’ हो लेकिन मुझे ‘बाप जैसा’ बनना है। मुझे बनना है। दूसरों को मेरे को नहीं बनाना है, मुझे बनना है। दूसरे ऐसे करें तो मैं अच्छा रहूँ, दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनूँ-नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। याद रखना-ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है-’देना ही लेना है’, ‘देने में ही लेना है’। इसलिए दृढ़ प्रतिज्ञा का आधार है-स्व को देखना, स्व को बदलना, स्वमान में रहना। स्वमान है ही मास्टर दातापन का। इस अव्यक्त वर्ष में क्या करेंगे? मधुबन में प्रतिज्ञा करके जायेंगे और वहाँ जा के बहानेबाज़ी का खेल करेंगे?

प्रतिज्ञा दृढ़ होने के बजाए कमजोर होने का वा प्रतिज्ञा में लूज़ होने का एक ही मूल कारण है। जैसे कितनी भी बड़ी मशीनरी हो लेकिन एक छोटा-सा स्क्रू (Screw; पेंच) भी लूज (ढीला) हो जाता तो सारी मशीन को बेकार कर देता है। ऐसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हो, पुरूषार्थ भी बहुत करते रहते हो लेकिन पुरूषार्थ वा प्लैन को कमजोर करने का स्क्रू एक ही है-’अलबेलापन’। वह भिन्न-भिन्न रूप में आता है और सदा नये-नये रूप में आता है, पुराने रूप में नहीं आता। तो इस ‘अलबेलेपन’ के लूज़ स्क्रू को टाइट (Tight; कसना) करो। यह तो होता ही है-नहीं। होना ही है। चलता ही है, होता ही है-यह है अलबेलापन। हो जायेगा-देख लेना, विश्वास करो; दादी-दीदी मेरे ऊपर ऐतबार करो-हो जायेगा। नहीं। बाप जैसा बनना ही है, अभी-अभी बनना है। तीसरी बात-प्रतिज्ञा को दृढ़ से कमजोर बनाने का आधार पहले भी हँसी की बात सुनाई थी कि कई बच्चों की नजदीक की नजर कमजोर है और दूर की नज़र बहुत-बहुत तेज़ है। नजदीक की नज़र है-स्व को देखना, स्व को बदलना और दूर की नज़र है-दूसरों को देखना, उसमें भी कमजोरियों को देखना, विशेषता को नहीं। इसलिए उमंग-उत्साह में अन्तर पड़ जाता है। बड़े-बड़े भी ऐसे करते हैं, हम तो हैं ही छोटे। तो दूर की कमजोरी देखने की नज़र धोखा दे देती है, इस कारण प्रतिज्ञा को प्रैक्टिकल में ला नहीं सकते। समझा, कारण क्या है? तो अभी स्क्रू टाइट करना आयेगा वा नहीं? ‘समझ’ का स्क्रू-ड्राइवर (Screw Driver; पेंचकस) तो है ना, यन्त्र तो है ना।

इस वर्ष समझना, चाहना और करना-तीनों को समान बनाओ। तीनों को समान करना अर्थात् बाप समान बनना। अगर बापदादा कहेंगे कि सभी लिखकर दो तो सेकेण्ड में लिखेंगे! चिटकी पर लिखना कोई बड़ी बात नहीं। मस्तक पर दृढ़ संकल्प की स्याही से लिख दो। लिखना आता है ना। मस्तक पर लिखना आता है या सिर्फ चिटकी पर लिखना आता है? सभी ने लिखा? पक्का? कच्चा तो नहीं जो दो दिन में मिट जाये? करना ही है, जान चली जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जाये-ऐसा दृढ़ संकल्प ही ‘बाप समान’ सहज बनायेगा। नहीं तो कभी मेहनत, कभी मुहब्बत-इसी खेल में चलते रहेंगे। आज के दिन देश-विदेश के सभी बच्चे तन से वहाँ हैं लेकिन मन से मधुबन में हैं। इसलिए सभी बच्चों के स्मृति-दिवस के अलौकिक अनुभव में बापदादा ने देखा-अच्छे-अच्छे अनुभव किये हैं, सेवा भी की है। अलौकिक अनुभवों की और सेवा की हर एक बच्चे को मुबारक दे रहे हैं। सबके शुद्ध संकल्प, मीठी-मीठी रूहरिहान और प्रेम के मोतियों की मालायें बापदादा के पास पहुँच गई हैं। रिटर्न में बापदादा भी स्नेह की माला सभी बच्चों के गले में डाल रहे हैं। हर एक बच्चा अपने-अपने नाम से विशेष याद, प्यार स्वीकार करना। बापदादा के पास रूहानी वायरलेस-सेट इतना पॉवरफुल है जो एक ही समय पर अनेक बच्चों के दिल का आवाज़ पहुँच जाता है। न सिर्फ आवाज पहुँचता लेकिन सभी की स्नेही मूर्त भी इमर्ज हो जाती है। इसलिए सभी को सम्मुख देख विशेष याद, प्यार दे रहे हैं। अच्छा!

सर्व समर्थ आत्माओं को, सर्व दृढ़ प्रतिज्ञा और प्रत्यक्षता का बैलेन्स रखने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा समझना, चाहना और करना-तीनों को समान बनाने वाले बाप समान बच्चों को, सदा समस्याओं को हार खिलाने वाले, परमात्म-गले का हार बनने वाले विजयी रत्नों को समर्थ बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात

सभी दोनों ही विल के पात्र हो-आदि की विल भी और साकार स्वरूप के अन्त की विल भी। विल-पॉवर आ गई ना! विल-पॉवर की विल विल-पॉवर द्वारा सदा ही स्व के पुरूषार्थ से एक्स्ट्रा कार्य कराती है। ये हिम्मत के प्रत्यक्षफल में पद्मगुणा मदद के पात्र बने। कई सोचते हैं-ये आत्मायें ही निमित्त क्यों बनीं? तो इसका रहस्य है कि विशेष समय पर विशेष हिम्मत रखने का प्रत्यक्षफल सदा का फल बन गया। इसलिए गाया हुआ है-एक कदम हिम्मत का और पद्म कदम बाप की मदद के। इसलिए सदा सब बातों को पार करने की विल-पॉवर विल के रूप में प्राप्त हुई। ऐसे है ना! आप सभी भी साथी हो। अच्छा साथ निभा रही हो। निभाने वालों को बाप भी अपना हर समय सहयोग का वायदा निभाते हैं। तो ये सारा ग्रुप निभाने वालों का है। (सभा से पूछते हुए) आप सभी भी निभाने वाले हो ना। या सिर्फ प्रीत करने वाले हो? करने वाले अनेक होते हैं और निभाने वाले कोई-कोई होते हैं। तो आप सभी किसमें हो? कोटों में कोई हो, कोई में भी कोई हो! देखो, दुनिया में हंगामा हो रहा है और आप क्या कर रहे हो? मौज मना रहे हो। वा मूँझे हुए हो-क्या करना है, क्या होना है? आप कहते हो कि सब अच्छा होना है। तो कितना अन्तर है! दुनिया में हर समय क्वेश्चन-मार्क है कि क्या होगा? और आपके पास क्या है? फुलस्टॉप। जो हुआ सो अच्छा और जो होना है वो हमारे लिए अच्छा है। दुनिया के लिए अकाले मृत्यु है और आपके लिए मौज है। डर लगता है? थोड़ा-थोड़ा खून देखकर के डर लगेगा? आपके सामने 7-8 को गोली लग जाये तो डरेंगे? नींद में दिखाई तो नहीं देंगे ना! शक्ति सेना अर्थात् निर्भय। न माया से भय है, न प्रकृति की हलचल से भय है। ऐसे निर्भय हो या थोड़ा-थोड़ा कमजोरी है? अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

सर्व शक्तियाँ ऑर्डर में हों तो मायाजीत बन जायेंगे

सभी अपने को सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत अनुभव करते हो? मायाजीत बन रहे हैं या अभी बनना है? जितना-जितना सर्व शक्तियों को अपने ऑर्डर पर रखेंगे और समय पर कार्य में लगायेंगे तो सहज मायाजीत हो जायेंगे। अगर सर्व शक्तियाँ अपने कन्ट्रोल में नहीं हैं तो कहाँ न कहाँ हार खानी पड़ेगी।

मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् कन्ट्रोलिंग पॉवर हो। जिस समय, जिस शक्ति को आह्वान करें वो हाजिर हो जाए, सहयोगी बने। ऐसे ऑर्डर में हैं? सर्व शक्तियाँ ऑर्डर में हैं या आगे-पीछे होती हैं? ऑर्डर करो अभी और आये घण्टे के बाद-तो उसको मास्टर सर्व-शक्तिवान कहेंगे? जब आप सभी का टाइटल है मास्टर सर्व शक्तिवान, तो जैसा टाइटल है वैसा ही कर्म होना चाहिए ना। है मास्टर और शक्ति समय पर काम में नहीं आये-तो कमजोर कहेंगे या मास्टर कहेंगे? तो सदा चेक करो और फिर चेन्ज (परिवर्तन) करो-कौनसी 2 शक्ति समय पर कार्य में लग सकती है और कौनसी शक्ति समय पर धोखा देती है? अगर सर्व शक्तियाँ अपने ऑर्डर पर नहीं चल सकतीं तो क्या विश्व-राज्य अधिकारी बनेंगे? विश्व-राज्य अधिकारी वही बन सकता है जिसमें कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हो। पहले स्व पर राज्य, फिर विश्व पर राज्य। स्वराज्य अधिकारी जब चाहें, जैसे चाहें वैसे कन्ट्रोल कर सकते हैं।

इस वर्ष में क्या नवीनता करेंगे? जो कहते हैं वो करके दिखायेंगे। कहना और करना-दोनों समान हों। जैसे-कहते हैं मास्टर सर्व-शक्तिवान और करने में कभी विजयी हैं, कभी कम हैं। तो कहने और करने में फर्क हो गया ना! तो अभी इस फर्क को समाप्त करो। जो कहते हो वो प्रैक्टिकल जीवन में स्वयं भी अनुभव करो और दूसरे भी अनुभव करें। दूसरे भी समझें कि यह आत्मायें कुछ न्यारी हैं। चाहे हजारों लोग हों लेकिन हजारों में भी आप न्यारे दिखाई दो, साधारण नहीं। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। यह अलौकिक जन्म है ना। तो ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक जीवन, साधारण जीवन नहीं। ऐसे अनुभव करते हो? लोग समझते हैं कि यह न्यारे हैं? या समझते हैं-जैसे हम हैं वैसे यह?

न्यारे बनने की निशानी है-जितना न्यारे बनेंगे उतना सर्व के प्यारे बनेंगे। जैसे-बाप सबसे न्यारा है और सबका प्यारा है। तो न्यारा-पन प्यारा बना देता है। तो ऐसे न्यारे और आत्माओं के प्यारे कहाँ तक बने हैं-यह चेक करो। लौकिक जीवन में भी अलौकिकता का अनुभव कराओ। न्यारे बनने की युक्ति तो आती है ना। जितना अपने देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारे लगेंगे। देह-भान से न्यारा। तो अलौकिक हो गया ना! तो सदैव अपने को देखो कि-’’देह-भान से न्यारे रहते हैं? बार-बार देह के भान में तो नहीं आते हैं?’’ देह-भान में आना अर्थात् लौकिक जीवन। बीच-बीच में प्रैक्टिस करो-देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो जायें। तो न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे। डबल फायदा है ना। परमात्म-प्यार का अधिकारी बनना-ये कितना बड़ा फायदा है! कभी सोचा था कि ऐसे अधिकारी बनेंगे? स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा लेकिन ऐसे अधिकारी बन गये। तो सदा यह स्मृति में लाओ कि परमात्म-प्यार के पात्र आत्मायें हैं! दुनिया तो ढूँढ़ती रहती है और आप पात्र बन गये। तो सदा ‘‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!’’-यह गीत गाते रहो, उड़ते रहो। उड़ती कला सर्व का भला। आप उड़ते हो तो सभी का भला हो जाता है, विश्व का कल्याण हो जाता है। अच्छा! सभी खुश रहते हो? सदा ही खुश रहना और दूसरों को भी खुश करना। कोई कैसा भी हो लेकिन खुश रहना है और खुश करना है। अच्छा!

ग्रुप नं. 2

विश्व कल्याणकारी बन सेवा पर रहो तो सेवा का फल और बल मिलता रहेगा

अपने सारे कल्प के श्रेष्ठ भाग्य को जानते हो? आधा कल्प राज्य अधिकारी बनते हो और आधा कल्प पूज्य अधिकारी बनते हो। लेकिन सारे कल्प का भाग्य बनाने का समय कौनसा है? अब है ना! तो भाग्य बनाने का समय कितना है और भाग्य प्राप्त करने का समय कितना है-यह स्मृति में रहता है वा मर्ज रहता है? क्योंकि जितना समय इमर्ज रहेगा उतना समय खुशी रहेगी और मर्ज होगा तो खुशी नहीं रहेगी। पाण्डवों को काम-काज में जाने से याद रहता है या काम करने के समय काम का ही नशा रहता है कि मैं फलाना हूँ? चाहे क्लर्क हो, चाहे बिजनेसमैन हो, चाहे कुछ भी हो-वो याद रहता है या यह याद रहता है कि मैं कल्प-कल्प का भाग्यवान हूँ? क्योंकि आपका असली ऑक्यूपेशन है-विश्व-कल्याणकारी। यह याद रहता है वा हद का काम याद रहता है? माताओं को खाना बनाते समय क्या याद रहता है? विश्व-कल्याणकारी हूँ-यह याद रहता है या खाना बनाने वाली हूँ-यह याद रहता है?

कुछ भी करो लेकिन अपना ऑक्यूपेशन नहीं भूलो। जैसे आपके यादगारों में भी दिखाया है कि पाण्डवों ने गुप्त वेष में नौकरी की। लेकिन नशा क्या था? विजय का। तो आप भी गवर्मेन्ट सर्वेन्ट बनते हो ना, नौकरी करते हो। लेकिन नशा रहे-विश्व-कल्याणकारी हूँ। तो इस स्मृति से स्वत: ही समर्थ रहेंगे और सदा सेवा-भाव होने के कारण सेवा का फल और बल मिलता रहेगा। फल भी मिल जाये और बल भी मिल जाए-तो डबल फायदा है ना! ऐसे नहीं कि कपड़ा धुलाई कर रहे हैं तो कपड़े धोने वाले हैं। जब विश्व-कल्याणकारी का संकल्प रखेंगे तब आपकी यह भावना अनेक आत्माओं को फल देगी। गाया हुआ है ना कि भावना का फल मिलता है। तो आपकी भावना आत्माओं को फल देगी-शान्ति, शक्ति देगी। यह फल मिलेगा। ऐसी सेवा करते हो? या समय नहीं मिलता है? अपनी प्रवृत्ति बहुत बड़ी है? निभाना पड़ता है! बेहद में रहने से हद के भान से सहज निकलते जायेंगे। गृहस्थीपन का भान है हद और ट्रस्टीपन का भान है बेहद। थोड़ा-थोड़ा गृहस्थी, थोड़ा-थोड़ा ट्रस्टी-नहीं। अगर गृहस्थी का बोझ होगा तो कभी उड़ती कला का अनुभव नहीं कर सकते। निमित्त भाव बोझ को खत्म कर देता है। मेरी जिम्मेवारी है, मेरे को ही सम्भालना है, मेरे को ही सोचना है........-तो बोझ होता है। जिम्मेवारी बाप की है और बाप ने ट्रस्टी अर्थात् निमित्त बनाया है! मेरा है तो बोझ आपका है, तेरा है तो बाप का है! इसमें कई चालाकी भी करते हैं-कहेंगे तेरा लेकिन बनायेंगे मेरा! कभी भी किसी भी कार्य में अगर बोझ महसूस होता है तो यह निशानी है कि तेरे के बजाए मेरा कहते हैं। तो यह गलती कभी नहीं करना। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

ब्राह्मण का अर्थ है - असम्भव को सम्भव करने वाले

सदा एक बल एक भरोसा-यह अनुभव करते रहते हो? जितना एक बाप में भरोसा अर्थात् निश्चय है तो बल भी मिलता है। क्योंकि एक बाप पर निश्चय रखने से बुद्धि एकाग्र हो जाती है, भटकने से छूट जाते हैं। एकाग्रता की शक्ति से जो भी कार्य करते हो उसमें सहज सफलता मिलती है। जहाँ एकाग्रता होती है वहाँ निर्णय बहुत सहज होता है। जहाँ हलचल होगी तो निर्णय यथार्थ नहीं होता है। तो ‘एक बल, एक भरोसा’ अर्थात् हर कार्य में सहज सफलता का अनुभव करना। कितना भी मुश्किल कार्य हो लेकिन ‘एक बल, एक भरोसे’ वाले को हर कार्य एक खेल लगता है। काम नहीं लगता है, खेल लगता है। तो खेल करने में खुशी होती है ना! चाहे कितनी भी मेहनत करने का खेल हो लेकिन खेल अर्थात् खुशी। देखो, मल्ल-युद्ध करते हैं तो उसमें भी कितनी मेहनत करनी पड़ती! लेकिन खेल समझ के करते हैं तो खुश होते हैं, मेहनत नहीं लगती। खुशी-खुशी से कार्य सहज सफल भी हो जाता है। अगर कोई कार्य भी करते हैं, खुश नहीं, चिंता वा फिक्र में हैं तो मुश्किल लगेगा ना! ‘एक बल, एक भरोसा’-इसकी निशानी है कि खुश रहेंगे, मेहनत नहीं लगेगी। ‘एक भरोसा, एक बल’ द्वारा कितना भी असम्भव काम होगा तो वो सम्भव दिखाई देगा।

ब्राह्मण जीवन में कोई भी-चाहे स्थूल काम, चाहे आत्मिक पुरूषार्थ का, लेकिन कोई भी असम्भव नहीं हो सकता। ब्राह्मण का अर्थ ही है-असम्भव को भी सम्भव करने वाले। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में ‘असम्भव’ शब्द है नहीं, मुश्किल शब्द है नहीं, मेहनत शब्द है नहीं। ऐसे ब्राह्मण हो ना। या कभी-कभी असम्भव लगता है? यह बहुत मुश्किल है, यह बदलता नहीं, गाली ही देता रहता है, यह काम होता ही नहीं, पता नहीं मेरा क्या भाग्य है-ऐसे नहीं समझते हो ना। या कोई काम मुश्किल लगता है? जब बाप का साथ छोड़ देते हो, अकेले करते हो तो बोझ भी लगेगा, मेहनत भी लगेगी, मुश्किल और असम्भव भी लगेगा और बाप को साथ रखा तो पहाड़ भी राई बन जायेगी। इसको कहा जाता है-एक बल, एक भरोसे में रहने वाले। ‘एक बल, एक भरोसे’ में जो रहता वो कभी भी संकल्प-मात्र भी नहीं सोच सकता कि क्या होगा, कैसे होगा? क्योंकि अगर क्वेश्चन-मार्क है तो बुद्धि ठीक निर्णय नहीं करेगी। क्लीयर नहीं है! अगर कोई भी काम करते क्वेश्चन आता है-’’पता नहीं क्या होगा?’’ कैसे होगा? तो इसको कहा जाता है युद्ध की स्थिति। तो ब्राह्मण हो या क्षत्रिय? क्योंकि अभी तक समय अनुसार अगर युद्ध के संस्कार हैं तो सूर्यवंशी में पहुँचेंगे या चन्द्रवंशी में? चन्द्रवंशी में तो नहीं जाना है ना! योग में भी बैठते हो तो कुछ समय योग लगता है और कुछ समय युद्ध करते रहते हो! उसी समय अगर शरीर छूट जाए तो कहाँ जायेंगे? ‘अन्त मती सो गति’क्या होगी? इसलिए सदा विजयीपन के संस्कार धारण करो। जब सर्वशक्तिवान बाप साथ है, तो जहाँ भगवान है वहाँ युद्ध है या विजय है? तो ऐसे विजयी रत्न बनो। इसको कहते हैं एक बल एक भरोसा। अच्छा!

ग्रुप नं. 4

अटेन्शन और चेकिंग रूपी पहरेदार ठीक हैं तो खज़ाना सेफ रहेगा

सदा अपने को बाप के सर्व खज़ानों के मालिक हैं-ऐसा अनुभव करते हो? मालिक बन गये हो या बन रहे हो? जब सभी बालक सो मालिक बन गये, तो बाप ने सभी को एक जैसा खज़ाना दिया है। या किसको कम दिया, किसको ज्यादा? एक जैसा दिया है! जब मिला एक जैसा है, फिर नम्बरवार क्यों? खज़ाना सबको एक जैसा मिला, फिर भी कोई भरपूर, कोई कम। इसका कारण है कि खज़ाने को सम्भालना नहीं आता है। कोई बच्चे खज़ाने को बढ़ाते हैं और कोई बच्चे गँवाते हैं। बढ़ाने का तरीका है-बाँटना। जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा। जो नहीं बांटते उनका बढ़ता नहीं। अविनाशी खज़ाना है, इस खज़ाने को जितना बढ़ाना चाहें उतना बढ़ा सकते हो। सभी खज़ानों को सम्भालना अर्थात् बार-बार खज़ानों को चेक करना। जैसे खज़ाने को सम्भालने के लिए कोई न कोई पहरे वाला रखा जाता है। तो इस खज़ाने को सदा सेफ रखने के लिए ‘अटेन्शन’ और ‘चेकिंग’-यह पहरे वाले हों। तो जो अटेन्शन और चेकिंग करना जानता है उसका खज़ाना कभी कोई ले जा नहीं सकता, कोई खो नहीं सकता। तो पहरे वाले होशियार हैं या अलबेलेपन की नींद में सो जाते हैं? पहरेदार भी जब सो जाते हैं तो खज़ाना गँवा देते हैं। इसलिए ‘अटेन्शन’ और ‘चेकिंग’-दोनों ठीक हों तो कभी खज़ाने को कोई छू नहीं सकता! तो अनगिनत, अखुट, अखण्ड खज़ाना जमा है ना! खज़ानों को देख सदा हर्षित रहते हो? कभी भी किसी भी परिस्थिति में दु:ख की लहर तो नहीं आती है?

स्वप्न में भी दु:ख की लहर न हो। जब दु:ख की लहर आती है तब खुशी कम होती है। उस समय बाप को सुख के सागर के स्वरूप से याद करो। जब बाप सुख का सागर है तो बच्चों में दु:ख की लहर कैसे आ सकती! आप आत्माओं का अनादि, आदि स्वरूप भी सुख-स्वरूप है। जब परमधाम में हैं तो भी सुख-स्वरूप हैं और जब आदि देवता बने तो भी सुख-स्वरूप थे! तो अपने अनादि और आदि स्वरूप को स्मृति में रखो तो कभी भी दु:ख की लहर नहीं आयेगी। अच्छा! पाण्डवों को कभी दु:ख की लहर आती है? कभी क्रोध करते हो? क्रोध करना अर्थात् दु:ख देना, दु:ख लेना। जिसको कभी क्रोध नहीं आता है वो हाथ उठाओ! घर वालों का भी सर्टिफिकेट चाहिए। कभी कोई गाली दे, इन्सल्ट करे-तब भी क्रोध न आये। सभी का फोटो निकल रहा है। नहीं आता है तो बहुत अच्छा। लेकिन आगे चलकर किसी भी परिस्थिति में भी माया को आने नहीं देना। अगर अभी तक सेफ हैं तो मुबारक, लेकिन आगे भी अविनाशी रहना। अच्छा! माताओं को मोह आता है? पाण्डवों में होता है ‘रोब’ जो क्रोध का ही अंश है और माताओं में होता है ‘मोह’! तो इस वर्ष क्या करेंगे? क्रोध बिल्कुल ही नहीं आये। ऐसे तो नहीं कहेंगे-करना ही पड़ता है, नहीं तो काम नहीं चलता? आजकल के समय के प्रमाण भी क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक-प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है। इसलिए यह भी एक बहुत बड़ा विकार है। तो क्रोध-जीत बनना ब्राह्मण जीवन के लिए अति आवश्यक है। माताओं को मोहजीत बनना है। कई बार मोह के कारण क्रोध भी आ जाता होगा! सब ने क्या लक्ष्य रखा है? बाप समान बनना है। तो बाप में क्रोध वा मोह है क्या? तो समान बनना पड़े ना! कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन मायाजीत बनना अर्थात् ब्राह्मण जीवन का सुख लेना। तो और अन्डरलाइन करके इस वर्ष में समाप्त करो। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

राजयोगी वह जो अपनी कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर में चलाये

सभी एक सेकेण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव कर सकते हो? या टाइम लगेगा? आप राजयोगी हो, राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना। तो शरीर आपका क्या है? कर्मचारी है ना! तो सेकेण्ड में अशरीरी क्यों नहीं हो सकते? ऑर्डर करो-अभी शरीर-भान में नहीं आना है; तो नहीं मानेगा शरीर? राजयोगी अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान कर्मबन्धन को भी नहीं तोड़ सकते तो मास्टर सर्वशक्तिवान कैसे कहला सकते? कहते तो यही हो ना कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। तो इसी अभ्यास को बढ़ाते चलो। राजयोगी अर्थात् राजा बन इन कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर में चलाने वाले। क्योंकि अगर ऐसा अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट टाइम ‘पास विद् ऑनर’ कैसे बनेंगे! धक्के से पास होना है या ‘पास विद् ऑनर’ बनना है? जैसे शरीर में आना सहज है, सेकेण्ड भी नहीं लगता है! क्योंकि बहुत समय का अभ्यास है। ऐसे शरीर से परे होने का भी अभ्यास चाहिए और बहुत समय का अभ्यास चाहिए। लक्ष्य श्रेष्ठ है तो लक्ष्य के प्रमाण पुरूषार्थ भी श्रेष्ठ करना है।

सारे दिन में यह बार-बार प्रैक्टिस करो-अभी-अभी शरीर में हैं, अभी-अभी शरीर से न्यारे अशरीरी हैं! लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट आने के लिए फास्ट पुरूषार्थ करना पड़े। सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? किस बात की खुशी है? सदैव अपने प्राप्त हुए भाग्य की लिस्ट सामने रखो। कितने भाग्य मिले हैं? इतने भाग्य मिले हैं जो आपके भाग्य की महिमा अभी कल्प के अन्त में भी भक्त लोग कर रहे हैं। जब भी कोई कीर्तन सुनते हो तो क्या लगता है? किसकी महिमा है? डबल फॉरेनर्स का कीर्तन होता है? संगम पर भाग्यवान बने हो और संगम पर ही अब तक अपना भाग्य वर्णन करते हुए सुन भी रहे हो। चैतन्य रूप में अपना ही जड़ चित्र देख हर्षित होते हो? अच्छा!

ग्रुप नं. 6

अलौकिक जीवन बनाने के लिए सब बातों में ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बनो

(मधुबन-निवासियों से मुलाकात) मधुबन की महिमा चारों ओर प्रसिद्ध है ही। मधुबन की महिमा अर्थात् मधुबन-निवासियों की महिमा। मधुबन की महिमा ज्यादा है या मधुबन-निवासियों की ज्यादा है? मधुबन किसे कहा जाता है? क्या इन भवनों को मधुबन कहा जाता है? मधुबन-निवासियों से मधुबन है। जो मधुबन की महिमा वो ही मधुबन-निवासियों की महिमा है। सदैव यही स्मृति में रखो कि मधुबन की महिमा सो हमारी महिमा! महिमा उसकी गाई जाती है जो महान होता है। साधारण की महिमा नहीं होती है। महानता की महिमा होती है। तो मधुबन निवासी महान हो गये ना! कि कभी साधारण भी बन जाते हैं? मधुबन निवासी अर्थात् सर्व-श्रेष्ठ, महान। अलौकिकता ही महानता है। लौकिकता को महानता नहीं कहेंगे। तो मधुबन निवासी अर्थात् हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प-अलौकिक। मधुबन निवासी अर्थात् साधारणता से परे। उनकी दृष्टि, उनकी वृत्ति, उनकी स्मृति, कृति-सब अलौकिक अर्थात् महान। यह है मधुबन निवासियों की महिमा। समझा? तो मधुबन में दीवारों की महिमा नहीं है, आपकी है।

मधुबन निवासी हर कर्म में फर्स्ट आने वाले हो ना। तो अव्यक्त वर्ष में फर्स्ट किस बात में आना है? ‘बाप समान’ बनने में, अलौकिकता में फर्स्ट आना है। तो मधुबन में अभी से, साधारण चाल, साधारण बोल का जब नाम-निशान नहीं रहेगा तब मधुबन वालों को विशेष इनाम मिलेगा। सारा वर्ष हर मास की रिजल्ट निकलेगी। तो हर मास में जरा भी साधारणता नहीं हो, महानता हो। महा-नता ही तो फर्स्ट है ना। साधारणता को फर्स्ट नहीं कहेंगे। तो मधुबन में देखेंगे-फर्स्ट प्राइज कौन लेता है? तो यह इनाम लेंगे ना? देखेंगे कौन इनाम लेते हैं! क्योंकि मधुबन निवासियों को विशेष ड्रामा अनुसार वरदानों की प्राप्ति है। जो मधुबन निवासी करेंगे वो चारों ओर स्वत: और सहज होता है। तो मधुबन को इस वरदान की दुआयें मिलेंगी। क्योंकि मधुबन है लाइट-हाउस, माइट-हाउस। लाइट-हाउस की लाइट चारों ओर फैलती है ना। बल्ब की लाइट चारों ओर नहीं फैलेगी, लाइट हाउस की चारों ओर फैलेगी। लाइट-हाउस बन अव्यक्त स्थिति, अव्यक्त चलन की लाइट चारों ओर फैलाओ। पसन्द है ना! अनुभवी हैं मधुबन वाले। मधुबन वालों को क्या मुश्किल है! जो चाहे वह कर सकते हैं। क्योंकि साधना का वायुमण्डल भी है और साधन भी हैं। जितने मधुबन में साधन हैं उतने सेवावेन्द्रों पर नहीं हैं। जैसा वायुमण्डल साधना का मधुबन में है वैसा सेवाकेन्द्र में बनाना पड़ता है, यहाँ स्वत: है।

पुरूषार्थ हरेक का इन्डीविज्युअल (Individual; व्यक्तिगत) है। चाहे संख्या कितनी भी हो लेकिन पुरूषार्थ हरेक को ‘स्व’ का करना है। अलौकिकता लाने के लिये एक स्लोगन सदा याद रखना, जो ब्रह्मा बाप का सदा प्यारा रहा! वह कौनसा स्लोगन है? ‘‘कम खर्चा बाला-नशीन’’- यह स्लोगन सदा याद रखो। कम खर्चे में भी बालानशीन करके दिखाओ। ऐसे नहीं-कम खर्चा करना है तो कमी दिखाई दे। कम खर्चा हो लेकिन उससे जो प्राप्ति हो वह बहुत शानदार हो। कम खर्चे में शानदार रिजल्ट हो-इसको कहते हैं ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’। तो अलौकिक जीवन बनाने के लिए सब में ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बनना है-बोल में भी, कर्म में भी। कम खर्च अर्थात् एनर्जी-संकल्प ज्यादा खर्च नहीं। कम खर्च में काम ज्यादा। ऐसे नहीं-काम ही कम कर दो। कम समय हो लेकिन काम ज्यादा हो, कम बोल हों लेकिन उस कम बोल में स्पष्टीकरण ज्यादा हो, संकल्प कम हों लेकिन शक्तिशाली हों-इसको कहा जाता है ‘कम खर्च बाला-नशीन’। सर्व खज़ाने कम खर्च में बाला-नशीन करके दिखाओ। मधुबन-निवासी तो भरपूर हैं। सुनाया था ना-मधुबन का भण्डारा भी भरपूर तो भण्डारी भी भरपूर है। तो मधुबन-निवासियों के भी सर्व शक्तियों के खज़ाने से भण्डारे भरपूर हैं। अच्छा!

(बाबा, एडवान्स पार्टी का इस समय क्या रोल है?) जो आप लोगों का रोल है वही उन लोगों का रोल है। आप शुभ भावना से सेवा कर रहे हो ना। लड़ाई-झगड़े के बीच जाकर के तो नहीं कर रहे हो। तो वो भी अपने वायब्रेशन से सब करते रहते हैं।

कांफ्रेंस के लिए सन्देश

कांफ्रेंस के पहले इतना शान्ति का वायब्रेशन दो, जो आने वाले आ सकें। अभी तो इसकी आवश्यकता है। और योग लगाओ। यह भी ब्राह्मणों के लिये गोल्डन चान्स हो जाता है! जब भी कोई ऐसी बात होती है तो क्या कहते हैं? योग लगाओ, अखण्ड योग करो। तो दुनिया की अशान्ति और ब्राह्मणों का गोल्डन चान्स। तो यह भी बीच-बीच में चान्स मिलता है बुद्धि को और एकाग्र करने का। (कर्फ्यू के समय क्लास में नहीं आ सकते हैं) लेकिन स्टूडेन्ट माना स्टडी जरूर करेंगे। घर में तो कर सकते हैं ना। टीचर का काम ही है-अपनी योग-शक्ति से अपने एरिया में कर्फ्यू खत्म कराना। यह सीन भी देखने से निर्भयता का अनुभव बढ़ता जाता है। अच्छा!